Friday, August 19, 2016

Wednesday, December 2, 2015

नेता और आम आदमी



 .क्या भारत का सिस्टम आम जनता को धोखा देता है ...???


आप खुद देखिये....
    
1- नेता चाहे तो 2 सीट से एक साथ चुनाव लड़ सकता है !!

लेकिन....
आप दो जगहों पर वोट नहीं डाल सकते,


2-आप जेल मे बंद हो तो वोट नहीं डाल सकते..

Lekin....
नेता जेल मे रहते हुए चुनाव लड सकता है.


3-आप कभी जेल गये थे,
तो
अब आपको जिंदगी भर कोई सरकारी
नौकरी नहीं मिलेगी,

Lekin....
नेता चाहे जितनी बार भी हत्या
या बलात्कार के मामले म  े जेल
गया हो, वो प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति
जो चाहे बन सकता है,


4-बैंक में मामूली नौकरी पाने के लिये
आपका ग्रेजुएट होना जरूरी है..

Lekin.....
नेता अंगूठा छाप हो तो भी भारत
का फायनेन्स मिनिस्टर बन सकता है.


5-आपको सेना में एक मामूली
सिपाही की नौकरी पाने के लिये

डिग्री के साथ 10 किलोमीटेर दौड़ कर
भी दिखाना होगा,

लेकिन....
नेता यदि अनपढ़-गंवार
और

लूला-लंगड़ा है तो भी वह आर्मी,
नेवी
और ऐयर फोर्स का चीफ 

यानि
डिफेन्स मिनिस्टर बन सकता है

और
जिसके पूरे खानदान में आज तक
कोई स्कूल नहीं गया.. वो नेता

देश का शिक्षा मंत्री बन सकता है

और
जिस नेता पर हजारों केस चल
रहे हों.. 

वो नेता पुलिस डिपार्टमेंट
का चीफ यानि कि गृह मंत्री बन सकता है.


यदि
आपको लगता है की इस सिस्टम
को बदल देना चाहिये..

नेता और जनता, दोनो के लिये
एक ही कानून होना चाहिये.. 

तो
इस संदेश को फार्वड करके देश
में जागरुकता लाने में अपना सहयोग दें..


Thursday, July 17, 2014

जागो



खेलने कूदने के दिनों में कोई बालक श्रम करने को मजबूर हो जाय तो इससे बडी विडम्बना समाज के लिए हो नहीं सकती । बाल श्रम एक ऐसा सामाजिक अभिशाप है जो शहरो में, गॉव में चारों तरफ मकडजाल की तरह बचपन को अपने आगोश में लिए हुए है । बाल श्रम से परिवारों को आय स्रोतों का केवल एक रेशा प्राप्त होता है जिसके लिए गरीब अपने बच्चों के भविष्य को इस गर्त में झोक देते है । 
सामाजिक विकास का हक पाने का अधिकार प्रत्येक बालक को है । यह जानकर और आश्चर्य होता है कि खनन उद्योग, निर्माण उद्योगों के साथ साथ्ा कृषि क्षेत्र भी ऐसा क्षेत्र है, जहॉं अधिकाधिक बच्चे मजदूरी करते हुए देखे जाते है । इन बच्चों को पगार के रूप में मेहनताना भी आधा दिया जाता है । ऐसा नहीं है कि बाल श्रम के निराकरण के लिए सरकारें चिन्तित न हों, लेकिन यह चिन्ता समाधान में कितनी सहयोगी साबित हुई है । यह मूल्याकंन का विषय है 
क्या ये हमारे देश का भविष्य है ? ये नन्हे नन्हे हाथ जिन में किताबें और पैंसिल होनी चाहिये उन हाथों में ये ईंटे , ये क्या मज़दूरी करने की उम्र है इस बालक की, क्या देश में कोई नियम या कानून नहीं या फिर सब रिश्वत के हाथों बिक गयें हैं , क्या माँ बाप का यही कर्तव्य है , क्या कोई नही जो इन बच्चो के भविष्य का सोचे
हम यह भूल जाते है कि सब कुछ कानूनों एवं सजा से सुधार हो जायेगा लेकिन यह असम्भव है । हमारे घरों में, ढावों मे, होटलों में अनेक बाल मजदूर मिल जायेंगे, जो कडाके की ठण्ड या तपती धूप की परवाह किये वगैर काम करते है। लेबर आफिस या रेलवे स्टेशन के बाहर इन कार्यालयों में चाय पहुचाने का काम यह छोटे छोटे हाथ ही करते है और मालिक की गालियॉ भी खाते है । सभ्य होते समाज में यह अभिषाप क्यों बरकरार है, क्यों तथाकथित अच्छे परिवारों में नौकरों के रूप में छोटे बच्चों को पसन्द किया जाता है । आप यह अक्सर पायेंगे कि आर्थिक रूप से सशक्त होती हुई महिला को अपने बच्चें खिलाने एवं घर के कामकाज हेतु गरीब एवं गॉव के बाल श्रमिक ही पसन्द आते है । इन छोटे श्रमिकों की मजबूरी समझिए कि इनके छोटे छोटे कंधों पर बिखरे हुए परिवारों के बडे बोझ है ।
बाल श्रम की समस्या को जड़ से मिटाना है, तो बाल श्रम कानूनों का ठीक ढंग से क्रियांवित करना ही पर्याप्त होगा। बाल दिवस पर बच्चों को बेहतर भविष्य देने के सरकारी वादे तभी पूरे हो पाएंगे, जब बच्चों का बचपन छीनने वालों को कड़ी सजा मिले, ताकि दूसरा कोई कानून के साथ खिलवाड़ करने का साहस ना जुटा सके
ये सब सवाल क्या आपके मन में नहीं उठते इस बालक को ऐसे काम करते देख कर , 
दिल रोता है ये सब देख कर, विदेशों में कानून है कि बच्चे को कम से कम माध्यमिक स्कूल ज़रूर पास करवाना होता है वरना उन्हे कानून सज ा देता है, कानून हमारे देश में भी है लेकिन उसके रखवाले बिके हुये हैं तभी गरीब मज़दूर बच्चो की ऐसी हालत है
मैं तो यही कहना चाहती हूँ सबसे की रोको ये सब , जब कोई भी ऐसा अन्याय होते देखे तो वहीं कानून की सहायता से ये सब रोक दिया जाये, इस के लिये सब के विकेक का जागना बहुत ज़रूरी है, सब देख कर आगे बड़ जातें हैं क्योंकि कोई भी पुलिस के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता, सब को शायद आदत सी हो गयी ये सब सड़कों पर देखने की, 
कोई इन बच्चों का दर्द समझना ही नही चाहता वरना ये सब कभी नहीं होता या कब का रूक चुका होता
रोको बाल श्रम को 
जागो भारतीय जागो...........

Saturday, March 22, 2014

मेहनती हाथ


मेहनत करनेवाले हाथ किसी के आगे क्यूँ फैले ,दिल रोता है मेहनती हाथों की ये हालत देख कर ,आज हर गली में एक ब्यूटी पार्लर आप को देखने के लिए मिल जायेगा और होगा भी भरा हुआ ,वहां हाथों की सुन्दरता बडाई जाती है ,लेकिन क्या ये हाथ बदसूरत हैं ,मुझे तो सब से ज्यादा खूबसूरत येही लगते हैं जो मेहनत करते हैं ,वो नहीं जो सिर्फ दिखावे के होते हैं ,हर तरफ सुंदरता का ,पैसे का बोला बाला है और मेहनत के हाथो का रंग काला है ,
  मेहनत भी करते हैं ये हाथ और अपनी ही मेहनत की कमाई के लिए दुसरो के आगे फैलते भी हैं ,क्या ये न्याय है ,तो मन में एक चीत्कार उठती है की नहीं ये सरासर अन्याय है ,हर तरफ देश में लूट खसोट हो रही है ,सब अपनी जेबें भर रहे हैं और ये मेहनती हाथ और मेहनत किये जा रहे हैं ,बदले में अपने परिवार का पेट भी नहीं पाल पा रहे

जरा सोचिये

ज़रा देखिये

इन हाथों को

Saturday, March 8, 2014

सफाई

 
ये हालत ये नज़ारा आप को किसी भी सड़क के किनारे देखने को मिल जायेगा ,गाँव में तो ऐसा दृश्य आम बात है ,सरकार ने हर जगह कचरे के लिए डिब्बे लगा रखे हैं लेकिन उनका इस्तेमाल करना शायद किसी को आता नहीं या थोडा सा भी कष्ट कौन करे ,जहाँ जगह देखि वहीँ कचरा फेंक दिया ,अपना घर साफ़ किया तो कचरा पडोसी के घर की साइड में लगा दिया ,क्या उससे आप का घर गन्दा नहीं लगता जब आप के घर कोई आये तो क्या उसकी नज़र सिर्फ आप के घर पर ही होगी ,क्या उसे वो कचरा नज़र नहीं आएगा
इसी तरह सडको पर पड़ा ये कचरा कितनी बिमाइयों को जन्म देता है ,देखने में जो बुर लगता है वो तो अलग बात है ,इस कचरे पर मक्खी मच्छर पैदा होते हैं जो बरसात में न जाने कितनी बिमारिय फैलाते हैं ,
हमारे यहाँ बच्चे के पैदा होने पर जितने टीके लगते हैं विदेशो में उससे आधे भी नहीं लगते ,क्यों....क्योकि वहां ऐसी गंदगी नहीं है
ये आप का देश है ,इसे आप साफ़ नहीं रखेंगे तो बीमारियाँ आप के ही दरवाज़े पर दस्तक देंगी

Sunday, August 19, 2012

धन्य है

वाह

सलाम है तुझे मेरे देश के वीर बहादुर

मेहनत और इस हालत में

मन भर आया

बस प्रणाम को आशीष के सिवा

मन में और कुछ न आया

जिस देश के ऐसे बच्चे होंगे

उस देश का सर सदा गर्व से ऊँचा होगा

हर इंसान के लिए मिसाल है तू

धन्य है तेरी जननी

धन्य है तू 

Wednesday, August 8, 2012

गरीब की खोली

घर

हम गरीबो को और क्या चाहिए 

बहुत है इतनी जगह जहाँ पांव फैला कर सो सकू 

महल भी तो बनना है सुबह मंत्री जी का 

अब न सोया तो काम कैसे करूँगा 

बस मंत्री जी इसे भी न तुडवा दे 

नहीं तो सड़क पर सो जाऊंगा 

नींद तो कांटो पर भी आ जाती है 

फिर ओरो को क्यों इतनी चीज़े चाहिए 

छोडो मुझे नहीं समझ आनेवाला ये सब 

गंवार हूँ गरीब हूँ 

मेहनत करके पेट भरना जनता हूँ 

और कुछ आता नहीं 

क्योकि पड़ा लिखा नहीं हूँ मै 

,माँ बाप भी तो गरीब थे  

शर्म किस बात की मेहनत करने में 

कोई चोरी थोड़ी करता हूँ 

बस ये खोली न तुडवा दे मंत्री जी