Saturday, May 19, 2012

आशीष

क्या लिखूं समझ नहीं आ रहा कलम हाथों में थम सी गयी है ,एक माँ अपने जिगर के टुकड़ो के साथ इस हालत में ,शायद शब्द भी ख़तम हो गए हैं मेरे
ये नन्हे बच्चे जिन्हें जिन्दगी का अर्थ मालूम नहीं वो जिन्दगी से झुझ रहे हैं
ये बेबस माँ तस्वीर खिंचवाने के लिए भी इस लिए मानी  की उन पैसो से अपने बच्चो को एक वक़्त का खाना दे सके
ये टूटा सा घर क्या इन्हें आंधी  तूफ़ान में बचाएगा या अपने साथ बहा ले जायेगा
आज जिन्दगी इतनी तेज दौड़ रही हैजो  इन लोगो को मालूम भी नहीं शायद
इन्हें तो  रोटी और कपडा भी नसीब नहीं हो रहा ...क्यों ...मन में ये सवाल उठता है ...
क्या हम इनके लिए कुछ नहीं कर सकते
क्या ये इंसान नहीं हैं... क्या इन्हें जीने का हक़ नहीं है...
क्या इन बच्चो को स्कूल नहीं जाना चाहिए....
ऐसे बहुत से सवाल मन को कचोटते हैं ,भगवान् ने तो सब को एक सा बनाया है फिर ये दुनिया क्यों भेद भाव करती है ...
कब जागेंगे सब गहरी नींद से और इन मासूमो का भविष्य उज्जवल होगा
क्या ये मात्र सपना ही बन कर रह जायेगा
क्या इन्हें कभी रोटी और कपडा कभी नसीब नहीं  होगा
हम लोग दान पुण्ये करते हैं ....इनको क्यों नहीं देते ...,क्या इन लोगो को देने पर  भगवान् खुश नहीं होंगे
इनसे बड  कर और कौन  होगा जिसका आशीष मिलेगा .......और जो सार्थक भी होगा ....क्या हमे ऐसा आशीष नहीं चाहिए .....

8 comments:

  1. संवेदना को झकझोर दिया चित्र और कथ्य ने रमा जी

    मरते हैं भूखे कितने कोई खा के मर रहा है
    सब कुछ 'तुम्हारे' वश में संवेदना ये कैसी
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com

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    1. आपने मेरी भावनाओं को समझा मै हार्दिद धन्यवादी हूँ आपकी श्यामल जी

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  2. Bahut aaccha vichar hai ...jarurat mand ko do wo sabse jayda acchha
    hai ...

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    1. धन्यवाद मंजुल सखी पढ़ने का और सराहने का

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  3. बहुत सुंदर रूप से सत्य को उजागर किया है.

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